होली, चोली और हमजोली- 8

Desi Sex Stories Hindi Sex Stories

सेक्स इन बस का मजा मैंने अपने दो बॉस के साथ लिया. दोनों ने जैसे चाह मेरे तीनों छेदों का इस्तेमाल किया. मुझे भी इस खेल में खूब आनन्द आया. आप पढ़ कर आनन्द लें.

यहाँ कहानी सुनें.

कहानी के पिछले भाग

में आपने पढ़ा कि
मैं और दीपक निढाल हो बिस्तर पर लेट गए, जाने कब मेरी आंख लग गई।

जब आंख खुली तो दीपक मेरी चूत चूस रहे थे … मेरी टांगें फैला कर उसने अपना चेहरा मेरे जन्नत द्वार में दिया हुआ था, मैं भी उसके मुख मैथुन का लुत्फ उठा रही थी।
आँखें बंद कर मैं भी जन्नत की सैर करने लगी।

दीपक ने मेरी गांड में उंगली करते हुए चूसना जारी रखा।
मेरी टांगें कांपने लगी, बदन अकड़ गया और मैं झड़ने लगी।

दीपक को ये अच्छा मौका दिखा, उसने मुझे कुतिया बना दिया और अपना खड़ा लौड़ा मेरी चूत में पेल दिया।
इस आसन में लंड और ज्यादा चूत की दीवारों से रगड़ खा रहा था।

अब वो मेरी गांड पकड़ कर मुझे लगातार तेजी से चोद रहे थे।

मैं कामुक आहें भरती, अपनी जवां चूत और दीपक के मोटे लौड़े के मज़े में खोई थी।
दीपक मेरे कंधे पकड़ अपनी ओर खींचते हुए पीछे से धक्के देने लगे।

उन्होंने मेरे दोनों हाथ पीछे कर पकड़ लिए और हर धक्के के साथ वो मुझे अपनी ओर खींचते … लंड जो आम तौर पर पूरा अंदर नहीं जा पाता, वो मेरी चूत की गहराइयों के गोते खा रहा था।

उनके इन दमदार धक्कों से लंड एक खास जगह चूत में टकरा रहा था, जो मेरे यौन सुख में और भी वृद्धि कर रहा था।

मैं अब अपने पर से आपा खोती जा रही थी … दीपक की जोरदार चुदाई ने मेरी जवानी की अकड़ और चूत की गर्मी के छक्के छुड़ा दिए।

दीपक वासना में लिप्त बोल रहे थे- कल रात तो बस एक शुरुआत थी, अब तू रोज मुझसे चुदेगी, रोज इस लौड़े को अपने छेदों में लेगी!

मैं तो केवल आहें भरने लायक हालत में थी- आआआ आह्ह … आआ आआ ह … आआआ आअह!

दीपक बोले- चिल्ला रण्डी, जितना चिल्ला सकती है चिल्ला! कोई छुड़ाने नहीं आयेगा आज तुझे, धीरज भी अपनी रातें रोशनी के साथ रंगीन कर रहा है! ये ले चुद!

मैंने भी दीपक का साथ देते हुए कहा- और अंदर तक चोदो मुझे, आज फाड़ दो ये चूत, बहुत परेशान करती है रोज मुझे!
“हां … आज फटेगी तेरी चूत, भोसड़ा बनेगा इसका!” दीपक ने जोश में आते हुए कहा.

दीपक ने जाने कहां से 3 इंच की मोटी मोमबत्ती निकाली और मेरी गांड में डाल दी।
अब मेरा बदन चर्म सुख की परिकाष्ठा पर था।

“आआ आआ ह्हह दीपक … आआआ आअह्ह …. याआ आह्ह ह …आ आआ आह!” करती हुई मैं झड़ने लगी, दीपक अब भी चोदे जा रहा था।

दो तीन मिनट और करने के बाद दीपक भी मेरी चूत में झड़ गया और अपना वीर्य मेरी चूत में भर दिया।

हमारी इस लंबी चुदाई से हम दोनों ही थक चुके थे, पसीने में भीग चुके थे।

मैंने गहरी सांसें भरते हुए दीपक से कहा- सर, आप बहुत अच्छा चोदते हैं!
दीपक ने कहा- बिस्तर पर मैं सिर्फ दीपक हूं तुम्हारे लिए। और तुम्हारा बॉस होने के नाते तुम्हें हुक्म देता हूं कि अब से रोज तुम शाम में हमारे साथ चलोगी दफ्तर का काम खत्म हो या न हो! सात बजे तुम मेरी गाड़ी में मेरा लंड चूसती मिलनी चाहिए हो।

“ठीक है दीपक, पर फिर क्या मैं सुबह थोड़ी देर से आ सकती हूं?” मैंने दीपक के सीने से लिपट कर उसे मनाते हुए लहजे में कहा.
“देखो, जितनी देर से आओगी और उतनी देर से जाओगी!” दीपक ने वासना भरी नज़रों से मेरी ओर देखा।

दीपक के सीने से लिपटे हुए जाने कब आंख लग गई.

उठी तो सुबह के चार बज रहे थे, मैं अब भी दीपक की बगल में नंगी पड़ी थी, मुझे मेरी नग्नता अच्छी लग रही थी।

मैं रात की चुदाई सोचते सोचते उंगली करने लगी.
मेरे तेजी से हिलते हाथ से दीपक की नींद खुल गई।
उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरी गीली उंगलियां अपने मुंह में डाल के चूस ली।

तब उसने मेरा साफ किया हाथ अपने धीरे धीरे खड़े होते लौड़े पे रखते हुए कहा- जब ये है तो उंगली क्यों कर रही हो, इसे चूस से खड़ा करती और बैठ जाती इस पर!
“मैंने सोचा आपको ना जगाऊं!” मैंने हिचकते हुए कहा.

“अरी पगली, मैं चूत चोदने का कोई मौका नहीं छोड़ता। इस टीम की सभी लड़कियां, मुझसे चुदती हैं। हर किसी का दिन तय है। पर तू मेरा खास माल है, तुझे रोज चोदूंगा, जब तक तेरी चूत की प्यास और जिस्म की आग ठंडी नहीं हो जाती!” उन्होंने पलटकर मुझ पर चढ़ते हुए अपना वर्चस्व दिखाते हुए कहा.

और देखते ही देखते उनका लौड़ा फिर मेरे अंदर प्रवेश कर गया, मैं फिर चुदाई के सुख में डूब गई।

मेरे हिलते बदन के साथ मेरी बड़ी चूचियां भी हवा में गोते खा रही थी जिनको दीपक कभी चूसते कभी रगड़ कर मसल देते. निप्पल मरोड़ कर मुझे दर्द देने में जाने उन्हें क्या मजा आता था।

दीपक अपने हाथ का अंगूठा मेरे दाने में लगा कर मसलने लगे।
मैं दीपक का बलिष्ठ बदन पकड़े उनके नीचे कुचली जा रही थी।

जब जब मेरी आहें धीमी होती, दीपक जोर से मेरी चूचियां मसल देते, इससे साफ था, मेरी आहें उन्हें और उत्तेजित कर रही थी।

दीपक ने बांहों में मुझे उठा लिया और खुद पीछे गिर गए.
अब मैं उनके ऊपर बैठ अपनी गांड हिला हिला के उनसे चुद रही थी।
या यूं कहो कि उन्हें चोद रही थी।

मैं उनके लंड पर बैठे बैठे टवर्क twerk करने लगी, दीपक आँखें बंद कर मेरी चूचियां भींचते हुए मज़े लेने लगे।
हम दोनों ही लंबी लंबी सांसों के साथ आहें भरते हुए एक साथ स्खलित हुए।

दीपक ने मुझे अपने ऊपर से उतार कर कहा- अब तुम अपने रूम में जाओ किसी के उठने से पहले! तैयार हो जाओ, नाश्ता करके दिल्ली निकलना है। और हां, बस में मेरे साथ ही बैठना, पीछे की सीट पर, सबके सोने के बाद तुझे नंगी करके तेरी चूत चूसनी है।

मैं कामुक मुस्कान बिखेरती कपड़े पहन कर बाहर आ गई।

रास्ते में धीरज मेरे कमरे से लौटते हुए दिखे.

“कैसी बीती रात?” उन्होंने पूछा.
“आखिर बन गई तुम भी दीपक की रोशनी … हा हा हा हा … चलो ये भी सही है, जाओ तैयार हो जाओ, कमरे का दरवाजा खुला है!”

मेरे जवाब देने से पहले ही उन्होंने बात काट दी और आगे चले गए।

मैं लौटी तो रोशनी नंगी सो रही थी.
जाने उसे देख कर मुझे कुछ कुछ होने लगा, मन किया जिस तरह दीपक ने मेरी चूचियां मसली, मैं भी किसी की मसल के बदला लूं।

मैं नंगी हो रोशनी के पास जाकर लेट गई।

मैंने रोशनी को जगाया- रोशनी … यार, तू धीरज को क्यों झेलती है रोज? इतनी खूबसूरत है, जवान है, कोई भी मिल सकता है हम दोनों को!
रोशनी की कमर में हाथ डालकर मैंने कहा।

मेरा स्पर्श पा रोशनी की आँखें खुलकर बड़ी हो गई.
मैंने बोलना जारी रखा- देख, ये साले लौड़े तो हमारी बजाते रहेंगे इन्हें जब भी मौका मिलेगा. पर जो मौका हम दोनों के पास है, वो हम ज़ाया क्यों करें?
यह कहकर मैंने रोशनी के होंठों की पप्पी ले ली।

जवाब में रोशनी ने भी मुझे किस करना शुरू कर दिया।

उसने कहा- साड़ी पहने तुम कल इतनी खूबसूरत दिख रही थी कि मन किया, तुम्हें उसी वक्त बांहों में लेकर किस कर दूं!
मैंने हंसते हुए कहा- तो फिर किया क्यों नहीं?

“मुझे नहीं पता था तुम्हें लड़कियां पसंद हैं!” रोशनी ने कहा.
“तुम्हें छूने से पहले तक मुझे भी नहीं पता था!” मैंने एक और चुम्बन के साथ उसे जवाब दिया।

मैं रोशनी को कसकर किस करने लगी.
रोशनी ने भी मेरी पीठ सहलाते हुए अपनी एक टांग मेरे ऊपर रख दी।
अब वो और मैं एक दूसरी को उंगली करने लगी।

मैं रोशनी की टांगों में बीच जा उसके चूत रस को पीने लगी।
वो रह रहकर मेरा मुंह अपनी टांगों के बीच दबाती हुई … कामुक आहें भर रही थी।

मेरा एक हाथ रोशनी की चूचियों पर था, रोशनी अपने मचलते बदन के साथ मेरे मुंह में ही झड़ गई।

अब उसकी बारी थी मेरी चूसने की … मैंने रोशनी से उसके चूचे चूसने की इजाजत मांगी।
उसके चूचे मेरे जितने तो बड़े नहीं थे पर एक कच्चे अमरूद से सख्त और कड़े थे।

मैंने दोनों हथेलियों में उसके चूचे दबोच लिए और दीपक की दिखाई राह पर चलने लगी।

रोशनी की सांवली चूचियां मैंने अपनी हथेलियों में रख जोर से निचोड़ दी और उसके निप्पल चूसने लगी।

उसके निप्पल गहरे भूरे रंग के थे और मेरे से बड़े थे जैसे रात भर धीरज ने चूस चूस कर मोटे कर दिए हो।

मेरा मन रोशनी की चूचियों से भर ही नहीं रहा था, मैंने रोशनी को सीधी लेटने को कहा और उसके मुंह पर अपनी चूत लगा दी.

अब वो एक अच्छी लेस्बियन की तरह मेरी चूत चूस चूस कर साफ़ करने लगी।
कुछ देर में मैं भी उसके मुंह में झड़ गई।

हम दोनों निढाल हो नंगी एक दूसरी से लिपटी हुई कुछ देर लेटी रही।

जब आठ बजे फोन का अलार्म बजा तो लगा बहुत देर हो गई.
हम वक्त बचाने को साथ ही नहाई और नहाते नहाते फिर एक एक दूसरी की चूत में उंगली की।

तैयार होकर नाश्ता कर हम बस की ओर चल दिए।

आगे सेक्स इन बस का मजा:

अब मन में एक द्वंद्व था, बस में दीपक के साथ बैठूं या रोशनी के साथ!

बस में चढ़ते ही दीपक ने आवाज लगा मुझे पास बुला लिया, रोशनी और मैं आँखों में बात करते हुए एक दूसरी को देखने लगी जैसे कह रही हों- फंस गई फिर से दीपक के साथ, सॉरी!

रोशनी ने भी आंखों आँखों में कहा- कोई बात नहीं, मुझसे बेहतर कौन समझेगा!

इतने में धीरज ने भी रोशनी को आवाज़ लगा दी, मैं और रोशनी खुशी खुशी मुस्कुराने लगी और पीछे की सीट पर चल दिए।

दीपक पहले की तरह ही बस की दिशा के बाईं ओर बैठ गये और धीरज रोशनी को दाहिनी खिड़की पर बिठा के उसके बायीं ओर बैठ गया।

सबकी गिनती होने तक सब शांति से बैठे रहे।
थोड़ी देर में बस चल पड़ी।

बस चले पंद्रह मिनट भी नहीं हुए थे कि रोशनी और मैं अपनी अपनी जगह दोनों मर्दों के हाथों से मसली जाने लगी।

दीपक ने एक हाथ मेरे गले के पीछे से ले जाकर मेरी कुर्ती के गले से अंदर डाल रखा था और दूसरा कुर्ती के नीचे से अंदर घुसा रखा था।

उधर रोशनी भी धीरज को अपनी कसी हुई चूचियों का मजा दे रही थी।
मन तो किया धीरज को हटा के मैं खुद रोशनी से चिपक जाऊं।

दीपक की आंखों की वासना भड़कती देख मेरा जिस्म भी धधकने लगा।

बस में सभी रात की पार्टी से थके, कानों पर गाने लगाए सोने की कोशिश कर रहे थे।

दीपक ने कुर्ती में ही हाथ पीछे डाल कर मेरी ब्रा खोल दी, बोले- बिना ब्रा के ज्यादा मस्त लगते हैं तेरे आम। जब भी तुझे देखता हूं, तेरे आमों का रस पीने का मन करता है।
मैंने भी दीपक को बढ़ावा देते हुए कुर्ती उतार के अलग कर दी।

अब मैं पिछली सीट पर चलती बस में नंगी दीपक का लंड सहला रही थी।
दीपक के आगे सीट नहीं थी, बस का पिछला दरवाजा था और उसकी सीढ़ियाँ थी।

दीपक ने मुझे सीढ़ियों पर जाकर पूरी नंगी होने को कहा।
मैं वहा चली गई और अपनी सलवार भी उतार कर सीट पर रख दी।

दीपक भी उठ के सीढ़ियों पर आ गए.
अब मैं सबसे निचली सीढ़ी पर बैठ कर दीपक का लौड़ा चूसने लगी।

धीरज ने भी तब तक अपनी टांगें सीट पर फैला कर लौड़ा बाहर निकाल लिया था और रोशनी दो सीटों के बीच नीचे बैठी धीरज का लौड़ा चूस रही थी।

ऐसा लग रहा था मानो सामने पोर्न चल रहा हो।

मैं चूसते हुए आँखें उठा के दीपक के चेहरे की ओर देख रही थी.
उसकी बंद होती आँखों में और हल्के से आह भरते होंठों से प्रतीत हो रहा था जैसे उसके सुख की सीमा चरम तक पहुंचने को है।

मैं चूसते हुए धीरज की चुसाई देखने लगी.
तभी मुझे अपने सिर पर दबाव सा बनता महसूस हुआ.
दीपक अपना लंड मेरे गले तक अंदर कर अपना वीर्य मेरे गले में गिराने लगे।

मैंने चेहरा ऊपर उठाया और देखा कि रोशनी अब भी चूस रही थी.

मुझे जाने क्या हुआ … मैं लपक कर गई और धीरज की टांगों के बीच बैठ कर रोशनी के साथ ही धीरज का लौड़ा चूसने लगी।

ये सब पीछे खड़े दीपक को बहुत गर्म कर रहा था।
उसने पीछे से मेरी गांड और चूत पे उंगली करनी शुरू कर दी।

धीरज दो दो खूबसूरत होंठों का साथ पाकर खुद को रोक नहीं पाया और झड़ गया.
रोशनी ने उसका सारा वीर्य पी लिया।

अब धीरज उठ कर रोशनी और मुझे चूमने लगा।
दीपक अब भी मेरी गांड और चूत में उंगली कर रहे थे.

अब रोशनी उठ कर दीपक की गोद में जा बैठी और उनके मुंह में चूचियां डाल दी।

इधर धीरज भी अब मेरी चूचियों के मज़े ले रहा था।

मेरी चूत से दरिया बहता हुआ मेरी जांघों से होते हुए मेरे घुटनों तक पहुंच गया।
दीपक ने अपनी उंगलियां बाहर निकाल रोशनी की चूत और गांड में घुसा दी।

धीरज बेतहाशा मुझे चूमने लगा और मेरी गांड दोनों हाथों से मसलने लगा।

रोशनी भी उधर बेसुध गीली हुए जा रही थी। रोशनी का पानी निकलते देख मैं रोशनी की जांघें चाटने लगी।
दीपक और धीरज मेरी बेबाकी से गर्म हुए जा रहे थे।

दीपक ने अपनी उंगलियां रोशनी के अंदर से निकाल दी और रोशनी का चेहरा मेरी ओर कर दिया।

अब दोनों अपनी अपनी ओर से रोशनी और मेरा नजारा देखने लगे।

रोशनी और मैं पागलों की तरह एक दूसरी को चूम रही थी.
सुबह हमारे बीच भड़की आग अब तक बुझी नहीं थी।

रोशनी और मैं 69 में हो गयी और एक दूसरी की चूत चाटने लगी.
मैं रोशनी के नीचे थी, मेरी टांगें दीपक की तरफ और चेहरा धीरज की तरफ था।

रोशनी की गांड धीरज की तरफ और चेहरा दीपक की तरफ था।
मैं रोशनी की चूत बड़े प्यार से चूस रही थी.

मकसद एक ही था, उसे चरम सुख देना।
धीरज रोशनी की चमकती खुली गांड देख, उसमे अपना लंड सेट करने लगा।

उधर दूसरी ओर धीरज भी मेरी चूत में लंड घुसाना चाह रहे थे.
जब रोशनी नहीं हटी तो उन्होंने रोशनी के बाल खींच उसका चेहरा मेरी चूत से अलग कर दिया और अपना लौड़ा मेरी चूत में पेल दिया।

रोशनी अब दीपक के चोदते लंड के साथ मेरा दाना चूसने लगी।
बड़ी ही मादक फोर सम चुदाई चल रही थी।

रोशनी और मेरे कारनामे देख दीपक और धीरज बेइंतेहा उत्तेजित थे.
धीरज के धक्कों के कारण रोशनी का सिर बार बार दीपक के पेट पे जा लगता।

ताव में आकर दीपक ने रोशनी के बाल खींच कर उसका चेहरा उठाया, लंड मेरी चूत से निकाला और सीधा रोशनी में मुंह में दे दिया।

दीपक रोशनी का मुखचोदन करते हुए मेरी चूत में उंगली करने लगे।
मैं अब भी रोशनी की बुर चाट रही थी।

रोशनी तीन लोगों से एक साथ चुद रही थी।
गांड में धीरज का लंड लिए, चूत में मेरा मुंह लिए और मुंह में दीपक का लंड लिए।

रोशनी झड़ने लगी।
धीरज ने भी अपना लौड़ा निकाल लिया और दीपक ने भी, दोनों अभी झड़े नहीं थे।
अगली बारी मेरी थी।

मैं रोशनी की गांड में गया लंड अपनी मुंह या चूत में नहीं लेना चाहती थी।

मैंने धीरज से कहा- दीपक तो एक बार मेरी गांड मार चुके हैं, आपको मौका अब तक नहीं मिला, मेरी गांड मारेंगे?
धीरज कामुक आवाज में बोला- मुड़ जा!

दीपक बोला- मुझे इसकी चूत मारनी है, तू गांड लेगा तो चूत कैसे मारूंगा?
तो दीपक ने मुझे अपनी गोद में आकर लंड पे बैठने को कहा और सट से लौड़ा अंदर टिका दिया.

मैं दीपक के सीने पे झुक गई ताकि मेरी गांड थोड़ी उभर के बाहर आए।

पीछे से धीरज ने आकर मेरी गांड में लौड़ा डाल दिया।

अब मैं दो लंड का मजा एक साथ लेने लगी।
जो सपना ले रही थी दो दिन से … वो अब बस में वापसी पर पूरा हो रहा था।

दीपक ने मुझे अपनी बलिष्ठ बांहों में कसकर जकड़ रखा था ताकि धीरज को भी मेरी गांड लेने में परेशानी ना हो।

मेरी गांड तो दीपक ने होली के दिन ही खोल दी थी, दीपक के लौड़े के आगे धीरज का लौड़ा पतला और छोटा था, वो आराम से मेरी गांड मार पा रहा था।

जल्दी ही दोनों झड़ने लगे और दोनों ने मेरे छेद अपने काम रस से भर दिए।

अब हम सब थक चुके थे.
तब तक खाने का समय भी हो रहा था, हम सबने कपड़े दोबारा पहन लिए।

आधे घंटे बाद बस ढाबे पर रुकी, तब दोपहर के ढाई बज रहे थे।
हमने खाना खाया।

मैं दीपक की ओर रोशनी धीरज की बांहों में सिमट के सो गई।

बस से उतरने से एक घंटा पहले दीपक और धीरज ने हमें बच्चा रोकने की दवा खिलाई.

मैंने जब पूछा कि बाकी लड़कियों को क्यूं नहीं खिलाई, तो उसने कहा- बाकी लड़कियों को क्यूं? इन दो दिन में तो चुदाई सिर्फ तुम दोनों की हुई है ना … तो तुम दोनों ही तो दवा खाओगी.

मुझे उसकी बात कुछ समझ नहीं आई।
मैंने कहा- होली पर जो सामूहिक चुदाई हो रही थी सबकी पार्टी में, बगीचे में, जिसमें सारी लड़कियां चोदी गई थी।

दीपक ने कहा- क्या बोल रही हो? मैं समझा नहीं … कौन सी सामूहिक चुदाई? ऐसा कुछ नहीं हुआ था होली के दिन! तुमने जरूर सपना देखा होगा या भांग पीकर तुम्हे कुछ भ्रम हुआ होगा। तुमने भांग भी तो बहुत ज्यादा पी थी।

मुझे आज भी यकीन नहीं कि वो मेरा वहम था।
कहीं भांग या ठंडाई में कुछ ऐसी दवा तो नहीं मिला के पिलाई गई थी कि शाम तक किसी को कुछ याद नहीं था।

अब भ्रम कहिए या सत्य, मेरे मुताबिक इस कार्यक्रम के दौरान मैं इस क्रम में चुदी.

पहली रात पूल कर्मचारी से दो बार!
फिर दीपक से!
उसके बाद धीरज से!
फिर उसी रात दीपक से दोबारा!

अगले दिन सुबह भांग के नशे में दीपक और धीरज से 3सम में!
फिर सामूहिक चुदाई में 4 अनजाने लड़कों से, दीपक से और धीरज से!
इसके बाद रोशनी से बाथरूम में नहाते हुए सामूहिक चुदाई के सबूत मिटाते हुए!
दोबारा पूल कर्मचारी से जब वो दवा देने आया.

फिर दूसरी रात में दीपक से 3 बार!
आखिरी सुबह रोशनी से!
फिर लौटते हुए सेक्स इन बस का मजा दीपक, रोशनी और धीरज संग 4सम.

इतनी चुदाई पर भी मेरी वासना शांत नहीं हुई बल्कि और दहक उठी।
इससे पहले मैं केवल सोचती थी कि मैं खुद को रोमन देवी वीनस का पुनर्जन्म हूं, जो प्यार, वासना, जीत और उपजाऊपन का प्रतीक मानी जाती है।

इस सबके बाद मुझे यकीन हो चला था कि वीनस मेरी कल्पना नहीं थी बल्कि मैं मानने लगी थी कि मैं ही इस नए संसार को वीनस हूं।

खैर, इस सब के बाद मैं रोज शाम घर देर से जाने लगी.
ठीक सात बजे मैं दीपक की गाड़ी के बाहर खड़ी हो जाती, दीपक आते … कार चलाते हुए मुझसे चुसवाते, जिस दिन उनका मूड अच्छा होता तो गाड़ी अंधेरी सड़क पे लगा के पिछली सीट पर चोद भी देते।

वो मेरी चुदाई हफ्ते में तीन चार बार तो कर ही लिया करते थे.
धीरज भी मुझे नए नए होटल में ले जाते और वहां अपनी रातें मेरे साथ रंगीन करते।

कई बार दीपक और धीरज ने चाहा जो बस में हुआ वो बार बार हो.
पर रोशनी और मेरे बीच अब प्यार पनपने लगा था और हम दोनों ही उस प्यार पर इन दोनों की छवि नहीं पड़ने देना चाहती थी।

ये सब तब तक चला जब तक मैंने उस कंपनी में नौकरी की.
उस दौरान मैं दो और लर्निंग इवेंट का हिस्सा भी रही।

जिनमें से एक तो छह महीने बाद ही था जो कि ऐनुअल परफॉर्मेंस रिव्यू खत्म होने के तीन हफ्ते बाद हुआ और हमारी टीम फिर से ट्रिप पर गई.

वहां क्या क्या कारनामे हुए … वो कहानी फिर कभी।

तब तक के लिए विदा लेती हूं, अपना प्यार बरकरार रखियेगा।
सेक्स इन बस का मजा आपको भी मिला होगा? कमेंट्स में लिखें.

सभी पाठक ध्यान रखें कि किसी भी महिला को उसकी मर्जी के विरुद्ध नशा कराना, नशे का फायदा उठाकर सेक्स करना, किसी भी प्रकार से सहमति के बिना छूना, सम्भोग करना अपराध है.
यह कहानी काल्पनिक है और केवल आपके मनोरंजन के लिए लिखी गयी है.

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